India number one businessman 2022 Gautam Adani and Adani group story in Hindi
India's number one businessman 2022 Gautam Adani and Adani group story in Hindi
आप रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसके धनकुबेर मालिक मुकेश अंबानी की बेइंतेहा कमाई के बारे में तो जानते होंगे।
लेकिन आज हम आपको गुजरात के एक ऐसे शख्स की कहानी बताएंगे जो दौलत के मामले में अंबानी को भी टक्कर दे रहा है। हर दिन नए नए बेंचमार्क सेट कर रहा है और न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में अपना दबदबा बना रहा है। जी हां, सही समझे आप। हम बात कर रहे हैं।
भारत के मशहूर बिजनेसमैन गौतम अडानी की जिन्हें एक वक्त था जब आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।
लेकिन आज एयरपोर्ट से लेकर बंदरगाह और कोयले से लेकर घर में इस्तेमाल होने वाले तेल तक से पैसा कमा रहे हैं। लेकिन कम ही ऐसे लोग हैं जो इनके बारे में बहुत ज्यादा जानते हैं तो जनाब भी गौतम अडानी की कामयाबी का राज जानना चाहते हैं। गौतम अडानी यूं तो रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी की ही तरह पहली पीढ़ी के बिजनेसमैन हैं, लेकिन आज उनकी नेट वर्थ बाकी उद्योग पतियों से कहीं ज्यादा है क्योंकि एक डायलॉग है जिसे अडानी ने सिद्ध साबित किया है। वो है कोई धंधा छोटा या बड़ा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।
अब हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि समय के साथ अडानी को जो भी धंधा मिला।
उन्होंने उसे पूरे मन से किया और परचम लहराते चले गए। लेकिन उनके फर्श से अर्श तक पहुँचने का सफर काफी जद्दोजहद भरा रहा है। उनका जन्म सन् 1962 में अहमदाबाद के एक आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में हुआ। पिता का छोटा सा काम था, लेकिन कुछ खास चल नहीं रहा था। ऐसे में वक्त के साथ आर्थिक हालत और बिगड़ते चले गए, जिसकी वजह से गौतम अडानी को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और काम के लिए हाथ पैर मारने पड़े। इसी बीच वो बड़े शहर से बड़ी उम्मीदें लेकर कम उम्र में ही मुम्बई आ गए, जहां शुरूआत में तो काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन कुछ वक्त के बाद उन्हें एक डायमंड सप्लायर के यहां नौकरी मिल गई। तीन सालों तक काम करने के बाद उन्हें समझ में आया कि जिन्दगी में करना क्या है।
इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर अपना काम शुरु किया और जावेरी बाजार में डायमंड ब्रोकरेज कंपनी की शुरुआत की।
गौतम अडानी को अपनी जिंदगी का वायर पता था। यानी वो काम क्यों कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने जी तोड़ मेहनत की और कम उम्र में ही धंधा दौड़ा दिया, लेकिन उनकी किस्मत चमकी। 1981 से जब उनके बड़े भाई ने उन्हें अहमदाबाद बुलाया। दरअसल भाई ने सामानों को लपेटने वाली प्लास्टिक की कंपनी खरीदी, मगर वो चल नहीं रही थी क्योंकि जो कच्चा माल चाहिए था वो जरूरत के हिसाब से नहीं मिल पा रहा था। बाहर देशों से कच्चे माल को इम्पोर्ट करना पड़ रहा था। ऐसे में इसे एक अवसर के तौर पर देखते हुए अडानी ने कांडला पोर्ट पर प्लास्टिक ग्रानोलर्स का आयात शुरु किया और 1988 में शुरू की अडानी एक्सपोर्ट्स जिसका नाम बदलकर बाद में अडानी इंटरप्राइजेज कर दिया गया। इसमें धातु, एग्रीकल्चर, प्रोडक्ट और कपड़े की कमोडिटी ट्रेडिंग होती थी। काम चल पड़ा तो कुछ ही साल में ये कंपनी और अडानी इस बिजनेस से बड़ा नाम बन गए और फिर 1994 में अडानी इंटरप्राइजेज को शेयर बाजार में लिस्ट कर दिया गया।
फिर साल आया 1995 का ये वो साल था जिसने आज उनके इस मुकाम तक पहुंचने की नींव रखी क्योंकि इस वक्त गुजरात सरकार पोर्ट डेवलपमेंट के लिए प्राइवेट कंपनीज की तलाश कर रही थी। ऐसे में जैसे ही ये खबर अडानी तक पहुंची उन्हें कमाई का एक और सोर्स नजर आया। इसलिए उन्होंने गुजरात के सबसे बड़े बंदरगाह मुंद्रा पोल को ही खरीद दिया। मुद्रा बोर्ड को खरीदने के बाद 1998 में गौतम अडानी ने अडानी पोर्ट्स एंड लॉजिस्टिक्स कंपनी की शुरुआत की। वैसे ये बंदरगाह की खासियत के बारे में बताएं तो करीब 8000 हेक्टेयर में फैला। ये पोर्ट आज भारत का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह है और इस बोर्ड से पूरे भारत के लगभग एक चौथाई माल की आवाजाही होती है। साथ ही ये जगह स्पेशल इकनॉमिक जोन के तहत बना है तो प्रमोटर कंपनी को कोई टैक्स भी नहीं देना पड़ता।
इस जोन में पावर प्लांट प्राइवेट रेललाइन लाइन और एक प्राइवेट एयरपोर्ट भी है। वैसे यहां गौर करने वाली बात है कि आज अडानी समूह देश के प्रमुख इन्फ्रास्ट्रक्चर ग्रुप में से एक है।
उनकी अडानी पोर्ट्स देश की सबसे बड़ी पोर्ट मैनेजमेंट कंपनी है और गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे सात समुद्री राज्यों में इनके 13 डोमेस्टिक पोर्ट्स हैं। खैर मुद्दे पर आते हैं। अब जैसे जैसे वक्त गुजरता गया अडानी खुद को ग्रो करते चले गए। वो लोगों की रसोईयों तक में पहुंच गए। फॉर्च्यून के थ्रू वही फॉर्च्यून जिसका रिफाइन डॉयल आज हर घर में सुबह शाम दिन रात इस्तमाल होता है। एक्चुअली जनवरी 1999 में अडानी ग्रुप ने विंध्यगिरि बिजनेस ग्रुप विलमार के साथ हाथ मिलाकर खाने के तेल के बिजनेस में कदम रखा था। वैसे फॉर्च्यून तेल के अलावा अडानी ग्रुप, आटा, चावल, दाल, चीनी जैसी दर्जनों चीजों से भी आपकी रसोई का हिस्सा बना हुआ है, जिनके रख रखाव के लिए दो हज़ार 5 में अडानी ग्रुप ने फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर अलग अलग। राज्य में बड़े बड़े साइलोज बनाए।
सालों से बेसिकली वो चीज होती है जिसने बड़े पैमाने पर अनाज को रखा जाता है।
सालों उसकी कनेक्टिविटी के लिए अडानी ग्रुप ने निजी रिलायंस भी बनाई ताकि अनाज को लाने ले जाने में आसानी हो। कहते हैं कि हीरे की परख जौहरी ही जानता है, इसलिए अडानी को काले कोयले में भी पैसा दिखा। उन्होंने डोमेस्टिक इलेक्ट्रिसिटी का जनरेशन किया। बड़े बड़े राज्यों को बिजली सप्लाय करनी शुरू की, लेकिन इतने बड़े पावर प्लांट को चलाने के लिए जरूरत से ज्यादा कोयला चाहिए था। इसलिए दिमाग चलाया और ऑस्ट्रेलिया की एक कोल माइन को खरीद डाला। फॉर्च्यून इंडिया मैगजीन के मुताबिक दो हज़ार 10 में अडानी ने लिंक एनर्जी से 12 हज़ार 100 470000000 में कोयला खदान खरीदी थी। गीली बेस 20 साल में मौजूद इस खदान में सात पॉइंट आठ बिलियन टन के खनिज भंडार हैं, जो हर साल 60 मिलियन टन कोयला पैदा कर सकती है।
इसी तरह इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी से इंडोनेशिया में मौजूद तेल गैस और कोयले के लिए अडानी ग्रुप ने साउथ सुमात्रा से कोयला ढुलाई के लिए 3 अरब डॉलर निवेश करने की घोषणा की।
उस समय इंडोनेशिया निवेश बोर्ड ने बताया था कि अडानी समूह 5 करोड़ टन की क्षमता वाले एक कोल हैंडलिंग पोर्ट का निर्माण करेगा और साउथ सुमात्रा आइलैंड की खदानों से कोयला निकालने के लिए ढाई 100 किलोमीटर रेल लाइन बिछाएगा। खैर अडानी अपना कारोबार फैलाते गए और पैसा अकाउंट में आता चला गया। जिस अडानी साम्राज्य का कारोबार दो हज़ार 2 में 76 पॉइंट 5 करोड़ डॉलर था, वो दो हज़ार 14 तक आते आते बढ़ कर 10 अरब डॉलर हो गया। साथ ही वक्त की जरूरत को देखते हुए अडानी ग्रुप ने नैचुरल गैस के क्षेत्र में भी बिजनेस को बढ़ाया और दो हज़ार 17 में सोलर पीवी पैनल बनाने शुरु किए। उधर, बंदरगाह और निजी रेल लाइन के बाद अडानी ने एयरपोर्ट की तरफ उड़ान भरी और दो हज़ार 19 में अहमदाबाद, लखनऊ, बंगलुरु, जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम जैसे छह हवाई अड्डों के मॉर्डनाइजेशन और ऑपरेशन की जिम्मेदारी उठा ली।
अब अगले 50 सालों तक अडानी ग्रुप इन सभी एयरपोर्ट्स का ऑपरेशन मैनेजमेंट और डेवलपमेंट संभालेगा।
वहीं मुंबई इंटरनैशनल एयरपोर्ट लिमिटेड में भी अडानी ग्रुप के पास सेवेन टी फोर प्रोजेक्ट की हिस्सेदारी है और ये किसी को बताने की जरूरत नहीं कि भारत ने मुम्बई एयरपोर्ट दिल्ली के बाद देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट है। वैसे जिस तरह सुंदर आकार लेने से पहले सोने को खूब तपाया जाता है, ठीक उसी तरह गौतम अडानी को भी जीवन में कई तरह का ताप झेलना पड़ा। उनका सामना कई तरह के विवादों से हुआ, लेकिन उन्होंने सब से पार पाया और एक अलग मुकाम हासिल किया।
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