How to use GPS in Car Bike Mobile what is GPS in Hindi

 How to use GPS in Car Bike Mobile what is GPS in Hindi





 दोस्तों भगवान के बाद अन्य भूले भटके लोगों को रास्ता दिखाने का दूसरा सबसे बेहतरीन तरीका जीपीएस है। अब सभी ने भी अपनी कार में या फिर अन्य जगहों पर जीपीएस का इस्तेमाल काफी किया होगा। जोमैटो जैसे ऐप से लेकर ओला ऊबर तक यह सभी कुछ जीपीएस की वजह से ही पॉसिबल हो पाया है। लेकिन सवाल तो यह है कि आखिर कैसे ये टेक्नोलॉजी स्पेस में घूम रही कुछ सैटलाइट्स की मदद से हमारी लोकेशन को इतना एक सेकेंड बता देती है। 

जीपीएस कैसे काम करता है और इसके काम करने में कितने चैलेंजिग हैं।


 जीपीएस या फिर ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम को अमेरिकन मिलिट्री ने 1978 में बनाया था और तब इसे नाव स्टार कहा जाता था। 1995 में फुली फंक्शनल होने के बाद 1996 में इसे आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया। आज अमेरिकन सेटेलाइट के अलावा यह ग्लोनास नाम की रशियन सेटेलाइट का इस्तेमाल भी करता है और कुछ ही वक्त में भारत का इसरो भी अपना जीबीएस सैटेलाइट लॉन्च करने का प्लान बना रहा है। तो अब देखते हैं कि यह काम कैसे करता है। 


एक। जीपीएस सिस्टम के तीन मेन कम्पलीट होते हैं। सैटेलाइट्स ग्राउंड स्टेशन और रिसीवर। यानी कि हम और आप स्पेस में कुछ जीपीएस सैटेलाइट को खास तरीके से पोजिशन किया गया है। आज दुनिया में बहुत से टोटल सैटेलाइट सिर्फ इसी काम के लिए डेडिकेटिड हैं, जिनमें से 24 कोर सैटेलाइट हैं और आठ इमरजेंसी सैटेलाइट  जो किसी भी दुर्घटना के वक्त काम में आ सकते हैं क्योंकि हमारी सैटेलाइट को लगातार मेंटिनेंस चाहिए होती है और मेंटिनेंस के बाद भी इसे वो 10 साल तक ही फंक्शन रह पाती है। जब आप अपने फोन की लोकेशन फोन करते हैं तो आपका फोन अपने नजदीक के सैटेलाइट को ढूंढने लगता है। पहले टूटी ट्रेडिशन मैथड यहां यूज किया जाता है। इससे आपका फोन तीन सबसे करीबी सैटेलाइट को ढूंढता है और लोग टीवी और लैटिट्यूड की मदद से आपकी लोकेशन का पता लगाता है।


 इसे ऐसे समझिए कि पहले सैटेलाइट जहां भी होगा, वह जमीन पर किस सर्कल करेगा। यानि की आप इसे बड़े से सर्किल में कहीं है और इसके बाद दूसरे सैटेलाइट अपनी पोजिशन के हिसाब से और एक सर्कल जो करेगा। अब जिस एरिया में ये दोनों सर्कल आपस में मिलेंगे या इंट्री से करेंगे तो उस एरिया में आपके डिवाइस से कहीं होगा, लेकिन ये लोकेशन अभी भी एक सेकेंड नहीं है। इसलिए एक और सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाता है जो एक और सर्कल जो करेगी और जिस पॉइंट पर ये तीनों सर्कल के दूसरे कोण से करेंगे। 


उस एग्जेक्ट लोकेशन पर आप होंगे। ये मेथड अच्छा था और परफेक्टली काम करता।



 अगर अर्थ फ्लाइट होती लेकिन यह तो जमीन पर और भी कई फैक्टर थे। जैसे मेथड को थोड़ा सा इलेक्ट्रिक बना देते हैं। मसलन ये ऐटीट्यूड तो नहीं होता इसलिए हमें थ्रीडी ट्रेडिशन मैथड की जरूरत पड़ी। थ्री डी ब्राज़ीलियन मेथड ढूंढी जो सही है बस यहां पर टूडी मैथड में आप लैटिट्यूड और डोमिनेट पर डिपेंड रहते हैं। वही थ्रीडी डायरेक्शन मेथड, चार अलग अलग सैटेलाइट का इस्तेमाल करता है और गेट को भी कंसीडर करता है। इसके लिए यह  मेथड सर्कस की बजाय थ्रीडी स्पेस का इस्तेमाल करता है जो इसे और भी ज्यादा एक्यूरेट बना देते हैं। इस मेथड के सही से काम करने के लिए ये बहुत जरूरी है कि अपने डिवाइस को सेटेलाइट की एग्जेक्ट लोकेशन एक्टिविटी टाइम पता हो।


 तब का सोनी कैलकुलेट करता है कि एक सिग्नल को लाइट की स्पीड से आपके फोटो लगाने और वापस से सैटेलाइट पर जाने तक कितना वक्त लगेगा और बेस्ट डिस्टेंस सिक्योरिटी स्पीडी टाइम के फॉर्मूले से ये दूरी का अंदाजा लगाता है, लेकिन इस मेथड में कई परेशानी है। परेशानी ये है कि पृथ्वी पर टाइम ज्यादा लोचदार परस्ती से ज्यादा फर्स्ट यानी स्पेस का एक सेकंड पृथ्वी के एक सेकंड से पहले गुजर जाएगा।

अभी के लिए से बिजली जाएगी। स्पेस में टाइम में पृथ्वी से 38 माइक्रो सेकंड तेज चलता है। 



सेटेलाइट के केस में यह फर्क बहुत मायने रखता है क्योंकि अगर इसे फैक्टर को कंसीडर ना किया जाए तो जीपीएस आपकी लोकेशन 10 किलोमीटर आगे पीछे बताएगा। इसे परेशानी को सॉल्व करने में एक चैलेंज ये भी है कि जहां हमारे फोन और बाकी डिवाइसेज नॉर्मल कॉल्स लोकेशन कमाल करते हैं, वही सेटेलाइट एटॉमिक क्लॉक्स का इस्तेमाल करती है जो ज्यादा ग्रेट होती है। इन सभी फैक्टर्स के कारण भी सेटेलाइट और आपके डिवाइस के टाइम में बहुत ज्यादा अंतर रहता है। अब एक सलूशन तो ये था कि हर डिवाइस में एटॉमिक क्लॉक लगा दी जाए, लेकिन एक एटॉमिक क्लॉक की कॉस्ट 30 से 40 लाख रुपए के बीच है जो आपके फोन को बहुत ज्यादा महंगा बना देगी।


 इसलिए एक दूसरा रास्ता निकाला गया। आपने नोटिस किया होगा  कि आपका फोन ज्यादातर और ऑटोमेटिकली अपने टाइम एडजस्ट करता है। अगर आप अपने फोन के टाइम को बैलून पर सेट कर दें तो एक हफ्ते के अंदर आप देखेंगे कि दुनिया भर की क्लॉक से आपके फोन की घड़ी कुछ पीछे चली गई है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आज के फोन बारबर रिसीवर से सिग्नल लेते रहते हैं और जब वो लोकेशन नहीं भी पूछ रहा होता तो। भी वह अपना टाइम बार बार इन सैटेलाइट के हिसाब से एडजस्ट कर रहे होते हैं और इसी मैथड का इस्तेमाल बैंकिंग सिस्टम में करते हैं। जोहरी ट्रांजेक्शन्स के आगे एक्यूरेट टाइम टेबल लगाने के लिए इन सैटेलाइट्स पर ही निर्भर है तो मोटे मोटे तौर पर इसी तरह जीपीएस से काम करता है। 

आपका फोन आपके नजदीकी सैटेलाइट को ढूंढता है।



 ये चार सैटेलाइट आपके लगे हुए लैटिट्यूड और कैटेगरी को कैलकुलेट करते हैं और फिर आखिरी सैटेलाइट इन चारों के डिसेक्शन प्वॉइंट को ढूंढ कर आपको आपके गेट लोकेशन बताता है, लेकिन अभी जीपीएस भी एक परफेक्ट सिस्टम नहीं है। कई बार आपने देखा होगा कि जीपीएस आपको किसी गलत ही रास्ते पर ले आता है। स्विटजरलैंड के एक वैन ड्राइवर को तो जीपीएस सिस्टम ने एक बोर्ड पर गन की चढ़ाई पर छोड़ दिया था। इसके बाद के हैवी लिफ्टिंग हेलिकॉप्टर की मदद से उसे वैन के साथ लिफ्ट करके बचाया गया।


 इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया में भी तीन जैपनीज स्टूडेंट्स एक बार नॉर्थ ब्लॉक आइलैंड की तरफ ड्राइव करते हुए जा रहे थे, लेकिन जीपीएस ने पानी को भी रूट समझ लिया और ये तीनों डूबने लगे तो उन्हें ट्रक ड्राइवर की मदद से रेस्क्यू किया गया। हमें यकीन है आपके साथ भी जीपीएस ने कुछ ऐसा जरूर किया होगा।

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