Rocketry The Nambi Effect Ott Platform: Rocketry the Nambi Effect Ott Platform Nambi Narayanan Biography in Hindi
Rocketry The Nambi Effect Ott Platform: Rocketry the Nambi Effect Ott Platform Nambi Narayanan Biography in Hindi
एजेंसी इसरो को आज दुनिया की लीडिंग स्पेस एजेंसीज में शुमार किया जाता है और इसमें कोई शक नहीं है कि इसरो की इस कामयाबी का सबसे बड़ा श्रेय इसमें काम करने वाले हमारे देश के महान साइंटिस्ट को ही जाता है और इसरो के एक ऐसे ही ग्रेट साइंटिस्ट मिस्टर नाम भी नारायण जी के बारे में आज हम आपको बताने वाले हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1994 में नामी नारायण ने कैसी टेक्नॉलजी और प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, जो कि अगर उस टाइम पूरा हो जाता तो दुनिया को इसरो की ताकत तो नाइंटीज के दौरान ही पता चल जाती, लेकिन एक इंटरनेशनल कॉन्सपिरेसी के चलते जिसमें अमेरिका से लेकर रूस तक कई देश इन्वॉल्व थे।
नांबी नारायणन को एक झूठे जासूसी के केस में फंसा दिया गया और उन पर आरोप लगाए गए कि वो इसरो की खूफिया इन्फॉर्मेशन पाकिस्तान को दे रहे हैं और दोस्तो इसी कॉन्सपिरेसी की वजह से इसरो को जो सक्सेस 1999 में ही मिल जानी चाहिए थी, वो उसे दो हज़ार 14 में जाकर मिली और इसरो करीब 15 साल पीछे चला गया। अब इसरो का ये जासूसी कांड क्या था और क्यों एक निर्दोष साईंटिस्ट को इसलिए फंसाया गया। वैसे नाम बिना नारायण के स्लाइड स्टोरी पर रॉकेट नाम की एक फिल्म भी आने वाली है, जिसमें के आर माधवन नाम में जी का रोल निभाते हुए नजर आएंगे तो दोस्तों नाम भी नारायणजी का जन्म 12 दिसंबर 1941 के दिन केरल राज्य के एक छोटे से गांव नागरकोइल में रहने वाली एक तमिल फैमिली में हुआ था।
अपने शुरूआती स्कूल की पढ़ाई उन्होंने डीवीडी हायर सेकंडरी नाम के एक लोकल स्कूल से की और उसके बाद तिरुवंतपुरम के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से उन्होंने अपना एम.टेक कंप्लीट किया। नाम भेजे शुरूआत से ही इसरो में काम करके देश की प्रगति में अपना योगदान देना चाहते थे और फिर एक बार 1966 के दौरान उनकी मुलाकात उस समय के इसरो चेयरमैन विक्रम साराभाई से हुई और इस मुलाकात के बाद उन्हें यह पता चला कि इसरो में सिर्फ हाइली क्वालिफाइड प्रोफेशनल्स को ही जॉब दी जाती है। विक्रम साराभाई नाम भी जी के टैलेंट को उस पहली मुलाकात में ही पहचान गए थे। इसलिए उन्होंने उनको सलाह दी कि वो आगे की पढ़ाई किसी आइवी लीग कॉलेज से पूरी करें और दोस्तों विक्रम सर की सलाह मानते हुए अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए नाम भी जी ने पहले नासा की फेलोशिप हासिल की और उसके बाद प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से केमिकल रॉकेट प्रोपल्शन में अपना मास्टर्स प्रोग्राम कंप्लीट किया।
नामवर जी की काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्हें नासा की तरफ से खुद एक जॉब ऑफर की गई थी, लेकिन उन्होंने अमेरिका की जगह अपने देश के लिए काम करने को चुना और वापस भारत आकर इसरो को आज रॉकेट साइंटिस्ट ज्वाइन कर लिया। इसरो के लिए काम करते हुए नांबी जी ने भारत को लिक्विड फ्यूल रॉकेट टेक्नॉलजी से इंट्रोड्यूस करवाया और यह अगले सेवेन 20 का दौर था। जब एपीजे अब्दुल कलाम सर अपनी टीम के साथ सोलर मोटर्स पर काम कर रहे थे। असल में नाम भी जिए एक ऐसे विजनरी साइंटिस्ट थे जो कि हमेशा 20 से 30 साल आगे की सोच रखते थे। यहां तक कि उन्होंने सेवेन टेस्ट के दौरान ही अपना एडिट कर दिया था कि अगर इसरो को सी वेली ने स्पेस प्रोग्राम में सक्सेस हासिल करनी है और अपने मिशंस के लिए इंसानों को ही स्पेस में भेजना है तो इसके लिए लिक्विड फ्यूल टेक्नॉलजी की जरूरत पड़ेगी।
इसीलिए उन्होंने उसी समय से ही लिक्विड फ्यूल इंजन्स पर काम करना शुरू कर दिया और फिर अपनी मेहनत, लगन व तेज दिमाग से उन्होंने भारत और इसरो के लिए विकास इंजन को डेवलप कर दिया। अब आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि विकास इंजन एक लिक्विड फ्यूल रॉकेट इंजन है, जिसका इस्तेमाल इसरो के पीएसएलवी और जीएसएलवी दोनों ही लॉन्च विकास में किया जाता है और पीएसएलवी वही लॉन्च व्हीकल है जिसका इस्तेमाल चंद्रयान वन को लॉन्च करने में किया गया था। यानि के चंद्रयान वन मिशन को सक्सेसफुल बनाने में नाम भी सरकार बहुत अहम योगदान रहा था। अभी यहां तक तो नाम भी जी के लाइफ और करियर में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन प्रॉब्लम तब शुरू हुई जब उन्होंने इसरो के क्रायोजेनिक प्रॉजेक्ट्स पर काम करना शुरू किया।
दरअसल, 1992 के दौरान भारत और रूस के बीच में एक एग्रीमेंट हुआ जिसके एकॉर्डिंग रूस 200 ₹35 करोड़ के बदले में भारत को क्रायोजेनिक फ्यूल बेस्ड इंजन डेवलप करने की टेक्नॉलजी ट्रांसफर करने वाला था। अब अमेरिका इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानता था कि अगर भारत को यह मॉर्डन टेक्नॉलजी मिल गई तो फिर इसरो उसका सीधा सीधा कॉम्पिटिटर बन जाएगा। इसीलिए अमेरिका किसी भी हाल में यह टेक्नॉलजी भारत के हाथ में नहीं लगने देना चाहता था और ऐसा करने के लिए उसने रूस के ऊपर ये अग्रीमेंट कैंसल करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। यहां तक कि उस समय के अमेरिकन प्रेसिडेंट जॉर्ज डब्लू बुश ने रूस को एक लेटर लिखकर यह धमकी भी दी कि अगर रूस ने भारत के साथ अपना यह समझौता रदद नहीं किया तो फिर उसे उनके ग्रुप से ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा।
अब दोस्तों यहां पर रूस अमेरिका की इस धमकी से डर गया और उसने भारत के साथ अपने अग्रीमेंट को कैंसल कर दिया। लेकिन इसके बावजूद भी हमारे वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी और इस प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकालते हुए उन्होंने रूस के साथ एक नया एग्रीमेंट। साइन कर लिया, जिसमें के यह तय किया गया कि भारत और रूस के साईंटिस्ट एक साथ मिलकर भारत के लिए क्रायोजनिक फ्यूल बेस्ड इंजन बनाएंगे। यानी कि इस एग्रीमेंट के जरिए रूस के द्वारा टेक्नॉलजी ट्रांसफर किए बिना ही भारत का टारगेट अचीव हो जाएगा, जो कि नाम भी नारायण के एकॉर्डिंग साल 1999 तक हो जाना चाहिए था, लेकिन दोस्तों। तभी अचानक से कुछ ऐसा हुआ जिससे की नाम भी नारायणजी की लाइफ और इसरो का फ्यूचर हमेशा के लिए बदल गया।
दरअसल हुआ यह कि अक्टूबर 1994 के दौरान तिरुवंतपुरम में मरियम रशीदा नाम की एक महिला को पुलिस ने अरेस्ट किया और उस महिला पर ये आरोप लगाए गए कि वह इसरो की रिसर्च से जुड़े हुए डॉक्यूमेंट्स और रॉकेट की ड्राइंग वगैरह पाकिस्तान को भेज रही है। इसके बाद से अगले महीने यानि कि नवंबर में पुलिस ने इस केस में नांबी जी समेत इसरो में काम करने वाले और कई सारे लोगों को अरेस्ट कर लिया। पुलिस का कहना था कि ये सभी लोग मरियम रशीदा से मिले हुए और यही लोग इसरो की सीक्रेट इन्फॉर्मेशन उसे देते थे। उस समय पुलिस ने जैसे तैसे करके इन सभी का कनेक्शन मरियम के साथ जोड़ दिया। अब दोस्तो नाम भी समझ चुके। उस समय इसरो के क्रायोजनिक प्रोजेक्ट के हेड थे, इसलिए उनके अरेस्ट होने से इस प्रोजेक्ट का काम पूरी तरह से रुक गया।
साथ ही भारत और रूस के बीच क्रायोजेनिक टेक्नॉलजी को लेकर जो नया समझौता हुआ था, वो भी पूरी तरह से रद्द हो गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत का एक ऐसा साइंटिस्ट जो कि अपनी पूरी लाइफ देश को ही डेडिकेट करने का इरादा कर चुका था। उसे एक झूठे जासूसी केस में लगातार 50 दिनों तक जेल में रखा गया। इन 50 दिनों के दौरान इंटेलिजेंस ब्यूरो केरला के स्टेट पुलिस के द्वारा नाम भी जेल को काफी ज्यादा टॉर्चर किया गया। यहां तक कि उन पर यह भी दबाव बनाया गया कि वह इस केस में इसरो के टॉप ऑफिशियल्स को फंसा दें, लेकिन उन्होंने किसी का भी नाम लेने से साफ इनकार कर दिया। नाम में नारायणजी ने इस बात को खुद बताया था कि इंटेरोगेशन के दौरान उन्हें इस हद तक टॉर्चर किया गया कि उन्हें हॉस्पिटल में भी एडमिट होना पड़ा था।
हालांकि पुलिस के पास नांबी जी के अगेंस्ट कोई भी प्रूफ नहीं था, लेकिन फिर भी अखबारों में उनके खिलाफ आर्टिकल छपते रहे और लोगों के सामने उनकी ऐसी इमेज पेश की गई कि लोगों ने भी उन्हें देशद्रोही मान लिया। अब दोस्तो ये केस चलते चलते लगभग दो साल का समय बीत गया और तब जाकर अप्रैल 1996 में सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट केरला कोर्ट के सामने रखी। इस रिपोर्ट में सीबीआई ने बताया कि जासूसी और देश द्रोह का ये पूरा केस झूठा था और इसरो की कोई भी इन्फॉर्मेशन या डॉक्यूमेंट कभी किसी दूसरे देश में गए ही नहीं। अब केरला कोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को एक्सेप्ट कर लिया और 90 जी पर लगाए गए सारे आरोप हटा लिए गए।
हालांकि आगे चलकर अपने एक इंटरव्यू के दौरान नाम्बियार ने कहा था कि उन्हें फंसाने के पीछे किसी फॉरेन पावर का हाथ हो सकता है। अब इस कॉन्सपिरेसी के पीछे अमेरिका था या फिर फ्रांस। हम किसी भी देश का खुलकर नाम नहीं ले सकते क्योंकि हमारे पास किसी भी देश के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। लेकिन हां इतना जरूर है कि इन सभी के पीछे किसी ना किसी विदेशी ताकत का हाथ तो जरूर था क्योंकि इस केस की वजह से सिर्फ नाम्बियार का ही नहीं बल्कि इसरो और भारत का भी बहुत बड़ा नुकसान हुआ था। असल में जिस क्रायोजनिक प्रोजेक्ट को इसरो 1999 में ही पूरा करने वाला था, वो इस केस की वजह से साल दो हज़ार 14 में जाकर पूरा हो पाया।
यानि कि इस कॉन्सपिरेसी की वजह से इसरो 15 साल पीछे रह गया। अब साल दो हज़ार 19 में इंडियन गवर्नमेंट ने नाम भी नरायन सर को पद्मभूषण से सम्मानित करके उन दागों को धोने की कोशिश की जो कि उनके चरित्र पर लगाए गए थे। और इसके पहले दो हज़ार 18 में सुप्रीम कोर्ट ने नांबी जी को केरला गौरव मैन के द्वारा ₹50 लाख या कंपनसेशन दिए जाने का आदेश दिया था। हालांकि केरला शौर्य ने उन्हें 5000000 की जगह पर 1 करोड़ ₹30 लाख का कंपनसेशन दिया था। लेकिन आप खुद ही बताइए कि एक झूठे केस की वजह से नाम्बियार ने जितना कुछ झेला जितना उनका समय खराब हुआ और इसरो का जो नुकसान हुआ क्या इस सब की भरपाई किसी कंपनसेशन से की जा सकती है।

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