Salary Account vs Savings Account: सैलरी अकाउंट और सेविंग अकाउंट में क्या अंतर है? समझें

 Salary Account vs Savings Account: सैलरी अकाउंट और सेविंग अकाउंट में क्या अंतर है? समझें






 बैंक अकाउंट जो है वो हम दो तरह से जानते हैं। एक तो बचत खाता और एक चालू खाता यानी कि जो सेविंग अकाउंट होता बैंक में और एक करंट अकाउंट होता है। लेकिन इसके अलावे कोई तीसरा काम होता है, जिसका नाम है सेलरी अकाउंट और हो सकता है कि आपको इस अकाउंट के बारे में पता हो। लेकिन अगर आप नहीं जानते तो आपको जान लेना चाहिए क्योंकि ये बहुत ही महत्वपूर्ण अकाउंट होता है जहां कहीं भी अगर आप जिन्दगी में कभी भी जॉब करते हो। प्राइवेट जॉब करते हो तो आपको सैलरी अकाउंट के बारे में नॉलेज होना जरूरी है। आइए देखते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि सैलरी अकाउंट और सेविंग अकाउंट्स में क्या अंतर होता है। 


इनमें मिनिमम बैलेंस का डिफरेंस क्या होता है और ब्याज दर के नियम इन दोनों अकाउंट के लिए क्या हैं। सबसे पहले तो आपको बता दूं जब भी कोई व्यक्ति किसी नई कंपनी में नौकरी ज्वाइन करता है तो सबसे पहले कंपनी खुद उसका सैलरी अकाउंट खोल दिया। सैलरी अकाउंट आप नहीं होते बल्कि कंपनी की तरफ़ से खोला जाता है और वो आपके उसी सैलरी अकाउंट में ही हर महीने कंपनी आपकी सैलरी डालती है। जैसा कि नाम से ही डिफाइन हो रहा है कि सैलरी अकाउंट इसका मतलब हर महीने की तनख्वाह आपके उस अकाउंट में आनी है, लेकिन अब सवाल ये उठता है कि ये सैलरी अकाउंट चाहे वो आपके सेविंग अकाउंट से कैसे अलग होता है और दोनों में क्या डिफरेंस है?  क्या समानताएं हैं।


 सबसे पहले ये समझिए कि सैलरी अकाउंट होता क्या? जैसे कि मैंने आपको बताया सैलरी अकाउंट को कंपनियों की रिक्वेस्ट पर खोला जाता है। जिस किसी भी कंपनी संस्थान में आप काम करें वो संस्था हर कर्मचारी को अपना खुद का एक सैलरी अकाउंट देती है। कंपनी बैंक को कहती आपका सैलरी अकाउंट खोलने के लिए। यूं समझिए कुल मिलाकर के एक कर्मचारी को पर्सनल सैलरी कौन मिलता है। चार महीने की उसकी सैलरी मिलती है, जबकि सेविंग अकाउंट में क्या होता है। सेविंग अकाउंट कोई भी रिप्लेस व्यक्ति खोल सकता है। हम आप में तो कोई भी जब चाहे सेविंग अकाउंट खोल सकते। आप अपने नजदीकी किसी भी बैंक ब्रांच में जा करके जो बेसिक डॉक्यूमेंट्स होते आपके आधार कार्ड, पैन कार्ड वगैरह जो भी देना हो देखे सेविंग अकाउंट्स कोई भी हो सकता है।



 चाहे आप खुद का बिजनेस करते बचायें आप नौकरी करते हो चाहे नहीं भी करते। चाहे आप कोई भी कामधंधा नहीं करता फिर भी बैंक आपका सेविंग अकाउंट खोल देता है। इसके लिए सैलरीड पर्सन होना जरूरी नहीं है। जनरली लोग क्या करते हैं। अपने रोज़ाना के जीवन में अपने फाइनेंस को मैनेज करने के लिए ही सेविंग अकाउंट खोल दें। होने से ब्याज कमाने वाला डिपोजिट अकाउंट मिल जाता है। अच्छा देखते अकाउंट खोलने का उद्देश्य क्या होना चाहिए। सैलेरी। अकाउंट को एक कंपनी कर्मचारी की सैलेरी क्रेडिट करने के उद्देश्य से खोल देता कि कंपनी अपने कर्मचारी की सैलरी हर महीने उनके खाते में डाल सके। वहीं सेविंग अकाउंट्स को कोई भी व्यक्ति खोल सकता है। 



शून्य जिसके पास अपना आधार कार्ड वगैरह वगैरह। जो बैंक के साथ अपनी बचत करने के लिए पैसे जमा कराना चाहता है। हर महीने की दो बड़ी माली जॉब की कोई किराने की दुकान या कोई छोटा मोटा बिजनेस व्यापार करते हैं तो आप अपनी हर महीने की बचत को साइड में निकालने के लिए अपना बचत खाता सेविंग अकाउंट खोल लेते हैं। जहां तक बात होती है न्यूनतम बैलेंस की तो सैलरी अकाउंट में किसी न्यूनतम बैलेंस की जरूरत नहीं होती है। जबकि सेविंग अकाउंट में बैंकों के नियम अलग अलग आप को न्यूनतम मिनिमम बैलेंस बनाए रखना जरूरी होता है। कई सारे सरकारी बैंकों में तो मिनिमम बैलेंस करो, लेकिन जैसे एसबीआई वगैरह में एक हज़ार ₹1,500 केनरा बैंक में इतना सा आपको मैनेज करके रखना पड़ता है।



 अदरवाइज मिनिमम बैलेंस नहीं होने की पेनल्टी चार्ज भी आप पर लगाया जाता। बैंक की तरफ से इसके उल्टा सैलरी अकाउंट में मिनिमम बैलेंस की कुछ भी जरूरत नहीं होती है। अब बात करें एक अकाउंट को दूसरे में बदलाव तो क्या करें जब सैलरी अकाउंट में कुछ समय के लिए सैलरी नहीं डाली जाती है। आमतौर पर तीन महीने इसको बेसिक पीरियड माना जाता है। अगर तीन महीने तक कंपनी की सैलरी आपके उसे लेने अकाउंट में नहीं आर्इ न तो बैंक क्या करते हैं। आपका जो सैलरी अकाउंट उतना उसको रेगुलर सेविंग अकाउंट में कनवर्ट कर देते हो तो मेडिकली बदल लेते हैं, जिसमें न्यूनतम बैलेंस को भी बनाए रखने की फिर जरूरत होती है। वही दूसरी तरफ आपके सेविंग अकाउंट्स को सैलरी अकाउंट में बदलना पूरी तरह बैंक पर निर्भर करता है।




 ये तब संभव है जब आप अपनी नौकरी बदलते हो और आपने जिस कंपनी में ज्वाइन किया है उसका अपने कर्मचारियों की सैलरी अकाउंट्स के लिए उसी बैंक के साथ कोई बेटी डिलिजेंस बैंक तो कंपनी के गाने के बियाह पर  आपका जो ओल रेडियो उस बैंक में सेविंग अकाउंट है ना उसी को सैलरी अकाउंट में कनवर्ट कर देता था। इसके उल्टे जैसा कि मैंने आपको बताया सैलरी अकाउंट में तीन महीने तक सैलरी नहीं आई तो वह बेसिक सेविंग अकाउंट में कन्वर्ट हो जाता। ये सीन होता है। ब्याज दर की बात करें तो सैलरी और सेविंग अकाउंट दोनों पर जमाना से ज्यादा समान बाकी कॉरपोरेट सैलरी अकाउंट को वह कोई भी व्यक्ति खोल सकता है। जिसकी कंपनी का बैंक के साथ सैलरी अकाउंट मौज़ूदा सैलरी अकाउंट को एम्प्लॉयर खोलता है। दूसरी तरफ सेविंग अकाउंट को कोई भी व्यक्ति खोल सकता है। 




इसी नियम पर इसके अलावा तीसरा जो कौन होता चालू खाता जो कॉरपोरेट इंडस्ट्री के लोग बागों के लिए खोल दे। अपने बिजली सिक्का लेनदेन करने के लिए क्योंकि चालू खाते में लेनदेन बड़े लेवल पर होता है। लाखों करोड़ रुपए में जो करंट अकाउंट होता, उसने करेंट अकाउंट में तो बैंक की तरफ से इंटरेस्ट ब्याज भी नहीं दिया जाता, जबकि वहां पर आपके मिनिमम बैलेंस वगैरा भी काफी ज्यादा होते हैं। कई सारे बैंकों के अलग अलग रूल्स के कोडिंग 10,000 या 50,000 मंथली ऐवरेज बैलेंस आपको मिनिमम बैलेंस मेंटेन करके रखना पड़ता है और इसके उल्टा ब्याज भी नहीं दिया जाता। करंट अकाउंट पर कुछ भी करंट अकाउंट की पासबुक वगैरह भी नहीं मिलती। आपको कोई ना करके ये कॉरपोरेट कमर्शियल काम करने वाले जो लोग बनवाते हैं वो करंट अकाउंट खोल दें। उम्मीदें दोस्तों सैलरी का उन सेविंग अकाउंट और करंट अकाउंट को लेकर काफी कुछ बातें आपको जरूर जानने मिलेगी।

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